कुछ अल्फाज़ ऐसे मिल जाते
लिखते लिखते हम बस विचार हो जाते
भावना हृदय से कुछ ऐसे निकलती
गंगोत्री से गंगा जैसे है मचलती !! (जैसे है प्रवाहित)
शब्दों का न कोई रोक होता
भाषा का न कोई टोक होता
भय से न मेरे हाथ रुकते
उन्मुक्त हो पन्तियों ,छन्दों में हम विचरते !!
लघुता न हमारे आड़े आती
अस्तित्व सुक्ष्म -विराट के दर्शन कराती
समाज का ,धारणा का न कोई अवरोध होता
परम हमारा जोश होता!!
वो गीत होंठो पर ऐसे आ जाते
गाते गाते हम बस संगीत हो जाते
अहसास दिल में कुछ ऐसे उमड़ती
महासागर में लहरें जैसे हैं उफनती !
बुद्धि कुछ ऐसी करामात करती
नयी सोच ,कुछ नया सूझ से हमारा साक्षात्कार करती
भावना कुछ ऐसी सघन हो जाती
घनाघोर घटा के भाँति शब्दों में बरस जाती !!
सब झोंक कर हम रिक्त हो जाते
ऐसा कुछ रच कर अमित हो जाते (अंनंत हो जाते)
सच् में ही स्वयं से हम पूर्ण हो जाते
शत प्रतिशत आनंदस्वरूप हो जाते !!
© अमित कुमार पाण्डेय
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