तू एक बीती बात है
पर आज देख , पाता हूँ
तेरा वंश फिर तैयार है !!
अंश भर न अंतर मिला
स्व विनाश के खातिर
तैयार और अधिक तत्पर मिला !
सोच इतनी छोटी और घृणित
मिल जाये बस एक छुद्र जीत
चाहे हो बर्बाद भारत विशिष्ट !
या, मुख को ये मोड़े खड़े हैं
पर ,इतिहास सब जानता है
तेरा पाप पहचानता है !!
उस शेर चौहान को
अंतिम हिन्दू शासक
दिल्ली के तख्तो ताज को !
सिंधु के उस पर तक
गर्जन सुनाई देती थी
हिन्दू कुष के पार तक
भारत को अभय प्राप्त था
राम राज्य की खुशहाली न सही
पर, गुलाम न जीवन काल था।।
उस तराइन के युद्ध मैदान को
सन् 1191 की साल को
और उस शेर की दहाड़ को!
प्राण अपना बचा कर,
भारत की पवित्र भूमि में
अभिमान अपना दफना कर।
भारत की और देखने की
पर ,जयचंद वो तेरा सहारा पा गाया
लूटेरा फिर आक्रमणकारी बन कर आ गया!
सन् 1192 का साल था
तेरी इकट्ठे की फ़ौज पर
फिर भी वो भारी पड़ा था ।
शहादत को पा सके वो दम कहाँ था
झूठ और अफ़वाह का सहारा लिया
शेरे हिन्द का हनन किया !
भारत के गौरव और अभिमान की थी
हत्या संस्कृति और सम्मान की थी
भारत के आस्था और विश्वास की थी
आज़ाद हर इंसान का हुआ था
जीत तेरी छुद्र ही थी
क्योंकि परतंत्र पूरा हिंदुस्तान हुआ था! (गुलामी को न्योता दिया था! !!)
सावधान करता हूँ
भविष्य के गुलामी से
आगाह करता हूँ !!
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#battle of Tarain