In honour of Armed forces
By Amit kr pandey
ऐ वक़्त ! आया है बेवक़्त ये न्योता
देश के इस प्रहरी को
कायरता ने ललकारा है फिर से
ज्वलन्त जवानी के जज़्बे को ।
ऐ वक्त "मैं आत्मा अजर अमर हूँ
जन्म और मृत्यु के परे
साथ कभी छूटे हैं नहीं
पथ पर मेरे तेरे |
अतः रुक कर थोड़ी देर देख
हमारा ये राण में कौसल
राम कृष्ण अर्जुन कर्ण शरीखे
हम जवानों के हौसल । (हौसला)
देख दुश्मनों की टोली
कायरता से घुस आई है
माँ भारती की आँचल को
गोली से छलनी करने आई है
नहीं जीत सके ये हमको
रण के मैदानों में
चटाई है हर बार धूल
ओंधे मुँह लड़ाई में ।
इसलिये हार से घबराकर ही
इन्होंने नयी रणनीति बनाई है
हमारे घर के आँगन को ही
मैदाने जंग बनाई है ।
शायद नहीं जानते ये हमकों
किस मिट्टी के हैं हम बनते ।
मैदाने जंग हो या हो आँगन
धर्म का ही हम वरन् करते ।
लो देखो! इतिहास को बतलाना
जब जब विपत्ति आई है
आगे बढ़ कर हमने ही
सीने पर गोली खाई है ।
देह छोड़ता हूँ मैं अब
पहचान छोड़ता हूँ मैं अब
जिस भारत भूमि पर जन्मा
उसका क़र्ज़ चुकाता हूँ मैं अब ।
लो घर का दिप देता हूँ बुझने
लौ बढ़े अमर जवान ज्योति की
ऊँचा रहे हिमालय का माथा
कलकल बहती रहे गंगा में धारा ।
मैं देता हूँ आज ये अपना
की देखो तुम सूरज कल का
स्वच्छ ,सुंदर ,श्रेष्ठ और एक भारत का
सिद्ध हो सपना हो जन जन का ।।
© amit kumar pandey
अमित कुमार पाण्डेय
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