भारत की आत्मा उसके गाँवों में बसती है। यदि हम अपने गाँवों का आकर्षण और जीवनशैली खो देंगे तो जल्द ही भारत अपनी पहचान और सनातन की मधुर जीवन-पद्धति खो देगा। इसलिए हम, एक प्रारंभिक कदम के रूप में, शिक्षा विभागों और विद्यालयों से यह प्रस्ताव और अपील रखते हैं कि—
1. गाँव से जुड़े प्रोजेक्ट अनिवार्य रूप से वर्ष में दो बार
- प्रत्येक विद्यार्थी (कक्षा 1 से लेकर पीएचडी तक, सभी विषयों और संस्थानों – विद्यालय, कॉलेज, IIT, IIM सहित) को हर छह माह में गाँव से जुड़ा एक प्रोजेक्ट करना अनिवार्य किया जाए।
- ये प्रोजेक्ट प्रकृति, कृषि, संस्कृति, इतिहास, लोककला, स्वास्थ्य या उद्यमिता जैसे विषयों से संबंधित हो सकते हैं।
- इससे विद्यार्थियों को ग्रामीण जीवन की गहराई से समझ मिलेगी और गाँवों में भी नई सोच व नवाचार पहुँचेगा।
2. परीक्षाओं और संगोष्ठियों का आयोजन गाँवों में
- जैसे चुनाव गाँवों में सफलतापूर्वक आयोजित होते हैं, वैसे ही परीक्षाएँ और शैक्षणिक कार्यक्रम भी गाँवों में आयोजित किए जा सकते हैं।
- प्रारंभ में छोटे स्तर पर विद्यालय व कॉलेज परीक्षाएँ, वाद-विवाद प्रतियोगिताएँ और संगोष्ठियाँ गाँव के सामुदायिक भवनों या पंचायत भवनों में आयोजित हों।
- इससे गाँवों की शैक्षणिक बुनियाद मजबूत होगी और ग्रामीण युवाओं में आत्मविश्वास व गौरव का भाव बढ़ेगा।
3. निजी विद्यालयों का वार्षिक कार्यक्रम गाँवों में
- सभी निजी विद्यालयों को अपने वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम पास के किसी गाँव में आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
- इन कार्यक्रमों में ग्रामीण जनता को विशेष अतिथि और सहभागी बनाया जाए।
- इससे गाँवों की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा (स्थानीय कलाकारों, विक्रेताओं व सेवाओं को अवसर मिलेगा) और लोक-संस्कृति का संरक्षण व प्रसार भी होगा।
👉 आइए, इन दो विचारों को लेकर हम एक नई शुरुआत करें—
- जिससे शिक्षा गाँवों तक पहुँचे,
- गाँवों की धड़कन फिर से भारत के दिल में गूँजे,
- और आने वाली पीढ़ियाँ अपने सनातन मूल्यों के साथ आधुनिकता का संगम करें।
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