"अभिव्यक्ति "
मै अपनी अभिव्यक्ति को
पहचान बना कर पेश करू
या अपनी पहचान को
एक अदद् अभिव्यक्ति दूँ।:-(
समझ न पाता किस अोर चलूँ
लू के थपेडों में या शींत की लहरों में
पथरीली राहों पर या लहरों कि उफानों पर
फर्क क्या पड़ता है जब अंज़ाम एक हो
मरने का भय क्या जब इसमें संसय न हो।:-(
पहचान के लिए फिर भी इन्सान मरा जाता है
कुछ करने को वह अपना धर्म समझ जाता है
कुछ भी करना धर्म नहीँ धोखा है
थोपा गया राह ,राह नहीं फासीं का फन्दा है।।;-)
स्वच्छन्दता को मार कर इन्सान, इन्सान न रह जाता है
अब अौर वह मानवता का अौज़ार न रह जाता है
निरस अौर बेज़ान,फिर भी खुद को इन्सान कहता है
पतन को भी अपना उथान कहता है।।:-)
आजादी हीं ताकत इन्सान की
इस प्रवाह को ना रोको
सभ्यता को देती- गति अौर दिशा
इसे कुन्द करके ना रखों।।:-S
मुक्त करो स्वयं को हर बन्धन से
मर्जी कि पथ पर चलने दो
अपने अन्दर कि ऊर्जा को
युँ व्यर्थ ना बहने दो।।:-)
स्वच्छन्दता के पथ पर हीं ,आयाम खुलते है सारे
मर्जी के पथ पर ही ध्येय पाते हैं सारे
उत्साह,ऊर्जा,तन,बुध्दि, मन का उद्देश्य से मिलन होता है
अपने से अपने का सृजन होता है।।:-)
मानवता को नया राह मिलता है
जीवन को नया विश्वास मिलता है
सभ्यता पाता है नया सवेरा
अौर मिलता है मानस को नव प्रणेता।।:-)
अतएव, पहचान कि पाश मे ना पड़
अपने को अभिव्यक्त कर
सही अौर गलत फासले के पार जा
खुद में समा कर खुद को ढुंढला ।।:-):-)
-written and composed by amit kr pandey 10/03/2010
--
amit kumar pandey
मै अपनी अभिव्यक्ति को
पहचान बना कर पेश करू
या अपनी पहचान को
एक अदद् अभिव्यक्ति दूँ।:-(
समझ न पाता किस अोर चलूँ
लू के थपेडों में या शींत की लहरों में
पथरीली राहों पर या लहरों कि उफानों पर
फर्क क्या पड़ता है जब अंज़ाम एक हो
मरने का भय क्या जब इसमें संसय न हो।:-(
पहचान के लिए फिर भी इन्सान मरा जाता है
कुछ करने को वह अपना धर्म समझ जाता है
कुछ भी करना धर्म नहीँ धोखा है
थोपा गया राह ,राह नहीं फासीं का फन्दा है।।;-)
स्वच्छन्दता को मार कर इन्सान, इन्सान न रह जाता है
अब अौर वह मानवता का अौज़ार न रह जाता है
निरस अौर बेज़ान,फिर भी खुद को इन्सान कहता है
पतन को भी अपना उथान कहता है।।:-)
आजादी हीं ताकत इन्सान की
इस प्रवाह को ना रोको
सभ्यता को देती- गति अौर दिशा
इसे कुन्द करके ना रखों।।:-S
मुक्त करो स्वयं को हर बन्धन से
मर्जी कि पथ पर चलने दो
अपने अन्दर कि ऊर्जा को
युँ व्यर्थ ना बहने दो।।:-)
स्वच्छन्दता के पथ पर हीं ,आयाम खुलते है सारे
मर्जी के पथ पर ही ध्येय पाते हैं सारे
उत्साह,ऊर्जा,तन,बुध्दि, मन का उद्देश्य से मिलन होता है
अपने से अपने का सृजन होता है।।:-)
मानवता को नया राह मिलता है
जीवन को नया विश्वास मिलता है
सभ्यता पाता है नया सवेरा
अौर मिलता है मानस को नव प्रणेता।।:-)
अतएव, पहचान कि पाश मे ना पड़
अपने को अभिव्यक्त कर
सही अौर गलत फासले के पार जा
खुद में समा कर खुद को ढुंढला ।।:-):-)
-written and composed by amit kr pandey 10/03/2010
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